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अश्वेतों की गिरफ्तारी में भेदभाव का आरोप- कैलिफोर्निया पुलिस नहीं ले सकेगी कुत्तों की मदद

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वॉशिंगटन। अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य की पुलिस अब अरेस्ट या क्राउड कंट्रोल में अपने डॉग स्क्वॉड की मदद नहीं ले सकेगी। यहां की असैंबली ने एक बिल पास किया है। इसमें कहा गया है कि पुलिस अश्वेतों या दूसरे देशों के नागरिकों की गिरफ्तारी के दौरान डॉग स्क्वॉड का गलत इस्तेमाल करती है। बिल के मुताबिक- क्राउड कंट्रोल के दौरान भी इस डॉग यूनिट का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, बिल में कुछ मामलों में पुलिस को इस यूनिट के उपयोग का अधिकार जरूर दिया गया है।

बाइडेन की पार्टी ही लाई थी बिल

  • असैंबली में यह बिल जो बाइडेन की डेमोक्रेट पार्टी के मेंबर कोरी जैक्सन और ऐश कालरा ने पेश किया। इन मेंबर्स ने कहा- अगर पुलिस चाहे तो पहले की तरह एक्सप्लोसिव्स का पता लगाने और ड्रग्स की सर्च में डॉग यूनिट का इस्तेमाल कर सकती है। लेकिन, कई मौकों पर हमने यह महसूस किया है कि पुलिस अश्वेतों के खिलाफ रंगभेद के कदम के तौर पर इनका इस्तेमाल करती है।
  • मेंबर्स ने कहा- पुलिस के यह तौर तरीके सीधे तौर पर जुल्म कहे जा सकते हैं, खास तौर पर अश्वेत अमेरिकियों के खिलाफ इस तरह के जुल्म किए जाते हैं। पहले लोगों को गुलाम बनाने के लिए भी यह होता था। इसे अमेरिका का काला इतिहास कहा जाता है। आज क्यों इस तरह की यूनिट का इस्तेमाल किया जाता है। इसे फौरन बंद किया जाना जरूरी है।
  • खास बात यह है कि कैलिफोर्निया श्वेत लोगों ने भी इस बिल का स्वागत किया है। जनरल सिटीजन नाम के एक संगठन ने कहा- इंसान तो इंसान है। रंग और नस्ल का भेद भी उसने ही पैदा किया है। हम जितनी जल्दी इस गलती को सुधार लें, उतना अच्छा होगा।
  • कई बार काट लेते थे कुत्ते

    • कैलिफोर्निया में इस तरह की कई शिकायतें मौजूद हैं, जब पुलिस ने अपराधियों और खास तौर पर अश्वेत आरोपियों के खिलाफ डॉग स्क्वॉड का इस्तेमाल किया और इससे लोगों में गुस्सा भड़का।
    • असैंबली की एक मेंबर कैथरीन ने कहा- कई मौकों पर हमने देखा कि पुलिस ने जिन आरोपियों के खिलाफ डॉग्स का इस्तेमाल किया, उन्हें इन डॉग्स ने गंभीर जख्म दिए। खास तौर पर अश्वेतों के खिलाफ तो यह कई साल से चल रहा है।
    • पुलिस रिकॉर्ड की ही बात करें तो पुलिस ने जिन केसेस में इस यूनिट का इस्तेमाल किया उनमें 67.5% आरोपियों को गंभीर जख्म आए और उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराना पड़ा। दूसरे मामलों में यह आंकड़ा महज 22% ही रहा।

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